मलूकपीठाधीश्वर राजेंद्र दास जी महाराज, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष और बागेश्वर धाम सरकार शास्त्री जी की दिल्ली में दिव्य भेंटवार्ता

*✨मलूकपीठाधीश्वर राजेंद्र दास जी महाराज, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और बागेश्वर धाम सरकार श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी की दिल्ली में दिव्य भेंटवार्ता*

*💐यमुना जी को स्वच्छ व प्रदूषण मुक्त करने हेतु यमुना यात्रा पर विचार-विमर्श*

नई दिल्ली, 17 माच। दिल्ली में आज एक ऐतिहासिक और दिव्य भेंटवार्ता हुई, जिसमें मलूकपीठाधीश्वर राजेंद्र दास जी महाराज, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और बागेश्वर धाम सरकार श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने राष्ट्र, सनातन धर्म, समाज में समानता और भारत के महान भविष्य पर महत्वपूर्ण विचार साझा किए। इस संवाद के दौरान दोनों संतों ने देश की विविधता में एकता की आवश्यकता और समग्र विकास की दिशा में ठोस कदम उठाने की बात की।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि भारत अब महाभारत नहीं, बल्कि ’महान भारत’ की यात्रा पर आगे बढ़ रहा है। आज की युवा पीढ़ी ’यंग दिल इंडिया’ की पीढ़ी है, खुले दिल की पीढ़ी, खुले दिल का भारत, जो सब के लिये हैं, पूरे विश्व के लिये द्वार खोल रहा है। यही तो वसुधैव कुटुम्बकम् भी है इसलिये इस पीढ़ी को तंग दिल इंडिया नहीं बनाना है, बल्कि संग दिल इंडिया बनाना है; सर्वे भवन्तु सुखिनः वाला भारत बनाना है; वसुधैव कुटुम्बकम् वाला भारत बनाना है; आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः वाला भारत बनाना है।

स्वामी जी ने यह स्पष्ट किया कि हमें समाज के हर हिस्से को साथ लेकर चलना होगा और वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति को अपनाना होगा, ताकि हम अपने देश को महान बना सकें। उन्होंने यह भी कहा कि भारत में शांति और समृद्धि का मार्ग एकजुटता और राष्ट्र के लिये साथ मिलकर काम करने में है।

स्वामी जी ने ’संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम्’ के उद्घोष के साथ यह बताया कि सनातन धर्म की सबसे बड़ी शिक्षा है कि हमें सब को साथ लेकर चलना चाहिए। हमें धर्म, जाति और भाषा से ऊपर उठकर एक साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता है, ताकि हम एक सशक्त, समृद्ध और शांतिपूर्ण राष्ट्र बना सकें। स्वामी जी और श्री शास्त्री जी ने समाज में समान अवसर देने के लिए हर व्यक्ति को समान अधिकार देने की बात की और यह आग्रह किया कि हमें समाज के किनारे और कोने पर पड़े लोगों के बारे में सोचना चाहिए और उन्हें मुख्यधारा में लाकर विकास की प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए।

इस संवाद के दौरान यमुना जी की स्वच्छता और प्रदूषण मुक्त करने के विषय पर भी विस्तृत चर्चा हुई। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि अब हमें एक यमुना यात्रा का आयोजन करना चाहिए, जिसमें हम यमुना नदी को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाएं। उन्होंने यह भी कहा कि नदियां हैं तो दुनिया है, नदियां हैं तो हम हैं, इसलिए यमुना नदी की सफाई और संरक्षण को एक मिशन के रूप में लिया जाना चाहिए।

स्वामी जी ने यह भी कहा कि हमें यह याद रखना होगा कि नदियों का संरक्षण सिर्फ हमारे पर्यावरण के लिए ही नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने आगे कहा कि यमुना के शुद्धीकरण के लिए एक संगठित और व्यापक प्रयास की आवश्यकता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक स्वच्छ और सुरक्षित पर्यावरण मिल सके।

इस अवसर पर श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने भी यमुना नदी के महत्व पर अपने विचार व्यक्त किए और यह कहा कि यमुना न केवल हमारे जीवन का हिस्सा है, बल्कि यह हमारे अध्यात्मिक और धार्मिक जीवन का भी अभिन्न हिस्सा है। उन्होंने यह भी कहा कि यमुना को स्वच्छ करना हमारे सामूहिक प्रयासों पर निर्भर करता है, और इसे सशक्त बनाने के लिए हमें हर एक नागरिक को जागरूक करना होगा।

स्वामी जी और श्री शास्त्री जी ने इस अवसर पर यह संदेश दिया कि हमें अपनी नदियों और पर्यावरण का संरक्षण एक राष्ट्रीय कर्तव्य समझकर करना चाहिए, ताकि हम आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और प्रदूषित मुक्त वातावरण दे सकें।

दोनों संतों ने यह भी कहा कि हमें किसी भी समस्या का समाधान सड़कों पर नहीं, बल्कि बैठकर, खुले दिल और दिमाग से मिलकर खोजना चाहिए। उन्होंने यह विश्वास व्यक्त किया कि केवल एकता, शांति और विकास के रास्ते पर ही हम एक सशक्त और समृद्ध भारत की ओर बढ़ सकते हैं।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, मलूकपीठाधीश्वर राजेंद्र दास जी महाराज और श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने देशवासियों का आह्वान करते हुये कहा कि वे अपनी जिम्मेदारी समझें और अपने-अपने स्तर पर यमुना नदी के संरक्षण और सफाई की दिशा में योगदान दें।

स्वामी जी ने कहा कि यदि हम एकजुट होकर इस कार्य में भाग लेंगे, तो यमुना नदी को पुनः अपनी पुरानी स्वच्छता और पवित्रता प्राप्त हो सकती है।

स्वामी जी ने यह कहा कि हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हमारे आंतरिक और बाहरी शुद्धिकरण से ही देश और समाज की प्रगति संभव है। एकजुट होकर हम अपने राष्ट्र को महान बना सकते हैं और यमुना यात्रा का हिस्सा बनकर हम न केवल अपनी नदी को बचा सकते हैं, बल्कि अपने पर्यावरण और समाज को भी एक बेहतर दिशा दे सकते हैं।

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