-सुदेश आर्या
जो ईश्वर की सत्ता पर अविश्वास करते हैं.
इंसानी शरीर की उंगलियों में लकीरें तब निर्मित होने लगती हैं जब इंसान मां की कोख में 4 महीने का हो जाता है। ये लकीरें एक रेडियल तरंग की सूरत में मांस पर बनना शुरू होती हैं। इन तरंगों को भी सूचना DNA देता है, मगर हैरत की बात ये है कि पड़ने वाली ये लकीरें इस बच्चे और बाकी तमाम लोगों और उनके पूर्वजों से मेल नहीं खाती।

जैसे लकीरें बनाने वाला इस प्रकार अपना प्रभुत्व और प्रभाव रखता है कि वह खरबों की तादाद में इंसान जो इस संसार में हैं और जो संसार में नहीं रहे उनकी उंगलियों में मौजूद इन उभारों की आकार और उनकी एक-एक डिज़ाइन से बा-ख़बर है। यही वजह है कि वह हर बार एक नए अंदाज़ का डिज़ाइन कोख में पल रहे बच्चे की उंगलियों पर नक्श करके ये साबित करता है –
कि है कोई मुझ जैसा डिज़ाइनर?
कोई है मुझ जैसा कारीगर?
कोई है मुझ जैसा आर्टिस्ट?
हैरानी की सर्वोच्चता तो इस बात पर समाप्त हो जाती है कि अगर जलने, ज़ख़्म लगने या किसी और वजह से ये फिंगरप्रिंट मिट भी जाएं तो दोबारा हू-ब-हू वही लकीरें जिनमें एक सेल की भी कमी पेशी नहीं होती ज़ाहिर हो जाती हैं!
तो अब बात ऐसे है कि पूरी दुनिया भी जमा होकर इंसानी उंगली पर किसी वजह किसी हादसे से मिट जाने वाली एक फिंगरप्रिंट को दोबारा नहीं बना सकती!
कोई तो है जो इस दुनिया को चला रहा है…
वही है सर्व शक्तिमान सत्ता.. सुपर पावर
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