सुदेश आर्या
Cystic fibrosis एक लाइलाज़ बीमारी है जिसमें रोज़ देखभाल की ज़रूरत पड़ती है। इससे पीड़ित लोग बमुश्किल पचास के होने तक जी पाते हैं। वो भी तब, जब वो अपना बेहद खयाल रखें।
मैरी के तीनों नन्हें बेटों को ये बीमारी थी। इसलिए वो एक संस्था में वॉलंटियर बन गई और उनके लिए फंड जुटाने लगी। रोज़ दसियों कॉल करने पड़ते। एक दिन उसके चार साल के बेटे रिक्की (रिचर्ड) ने उसे फोन करते सुन लिया।

“मैं जानता हूं आप क्या करती हैं”
मैरी घबरा गई। उसने अपने चार साल के बेटे को अब तक उसकी बीमारी के बारे में कुछ भी नहीं बताया था। बच्चा था, उसे क्यों बताना कि वो किस जानलेवा बीमारी से पीड़ित है।
“बताओ, क्या काम करती हूं मैं”, मैरी ने घबराते हुए पूछा।
“आप 65 रोजेज़ के लिए काम करती हैं”
सिस्टिक फाइब्रोसिस को बार बार बोलिए, 65 Roses सुनाई देगा।
65 Roses
पैंसठ गुलाब के फूल
चार साल के बच्चे को सिवाय खूबसूरती के और क्या दिखाई दे सकता है, नफ़रत की ट्रेनिंग तो हम उसे देते हैं।
ये प्यारा नाम ऐसा चिपका, कि आज तक इस ख़तरनाक बीमारी को बच्चे इसी नाम से पुकारते हैं।
1965 में चार साल का रहा रिचर्ड 2014 तक जिया।
बेहद मुश्किल हालात में भी खूबसूरती कोई मैरी का होनहार बेटा ही तलाश सकता है।
“अर्थात् सकारात्मक सोच आपके जीवन के दिन बढ़ा सकती है।”
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